Saturday, October 9, 2010

कसक


जागि है इस दिल में एक कसक आज,
जाने, किस वजह से,
जाने, किस तरह से।

यूँ ही बैठा, मैं अपने ख्यालों में,
घिरा हुआ, कुछ अनजाने से सवालों में।
खुद से पूछता हूँ यहीं,
की यह क्या हैं???

ये तेरी उन मीठी - मीठी बात्तों की कशिश है,
या तेरी उन तीखी जेहरीली यादों की कशिश है।
यह तेरी, फूल सी खिलखिलाती हंसी की कशिश हैं,
या तेरी उन हिरनी सी आँखों की कशिश है।
दिल को, हर वक़्त यह लगता है,
की यह तेरी कशिश में ही डूब जाने की, एक कसक हैं।

जागी इस दिल में आज फिर एक ऐसी कसक हैं...

यह तेरे उन घने काले केशुओं के,
अंधेरो में खो जाने की कसक हैं।
या तेरे चाँद से ख़ूबसूरत चेहरे की, चमक में
एक नए सवेरे की तरफ जाने की एक कसक है।
लगता हैं मुशको, की शायद
यह तेरे इंतज़ार में, पल - पल बीततें, लम्हों की कसक है।

जागी इस दिल में आज फिर एक ऐसी कसक हैं...

यह तेरे उन कोमल हाथों को, छु लेने की कसक हैं।
या तेरे उन प्यारी बाँहों में सिमट कर, दुनिया भुला देने की कसक हैं।
दिल हम अपना हारे बैठे हैं,
बस अब एक तुझ बेवफा को, पाने की एक कसक है।

जागी इस दिल में आज फिर एक ऐसी कसक हैं...

तेरे दिलो - दरमियाँ उठते, हर सवालों का
हल दूंढ़ लेन की, एक कसक हैं।
हाँ, तुझे अपना, सिर्फ अपना,
बना लेने की एक कसक हैं।

जागी इस दिल में आज फिर एक ऐसी कसक हैं...

No comments:

Post a Comment