Saturday, October 16, 2010

पिया रे...


याद तेरी आई, फिर पिया रे...
ना जाने घुट रहा है, क्यों यह जिया रे...
दूर हो के भी, तू मुझसे दूर तो नहीं,
ना जाने क्यों जल रहा है फिर,
यह जिया, पिया रे...

तू एक बार फिर, पास आई, पिया रे...
तेरी नज़रों ने है छु कर, वो असर किया रे...
पल में ही सारे पलछिन समेत कर,
तुझमे समां जाना चाहता है,
यह जिया, पिया रे...

इस कदर तुझसे प्यार करता हूँ, पिया रे...
एक लम्हा भी तुझे भुला ना पाया है, यह जिया रे...
तू जिस रूप में भी साथ हो, मंजूर है,
बस साथ पाने को तरप रहा है,
यह जिया, पिया रे...

समझ के भी, ना समझा कभी तुने, पिया रे...
दूर हो गयी, तुम मुझसे, ना जाने, मैंने ऐसा क्या किया रे...
अब एक अनजान सी बेरुखी हैं, तेरी मुजशे,
उस बेरुखी को महसूस कर, जलता है,
यह जिया, पिया रे...

पर करता हूँ तुमसे प्यार बहुत,
सो, ना आना कभी लौट के वापस, पिया रे...
जल जायेगा जिंदा ही, यह जिया, पिया रे...
ना जाने क्या चाहता हूँ, अब मैं, पिया रे...
पिया रे...पिया रे...मोरे पिया रे...

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